Saturday 4 July 2015

प्रदेशवाद और रिवाजों की जकड़न के कारण कुंवारी लड़कियों की बढ़ती समस्या

हम अपने अन्य विभिन्न माध्यमों से यह विचार समाज में फैलाने पर लगे हुए हैं कि प्रदेशवाद को छोड़ें, रिश्ते होने में तभी आसानी होगी. लेकिन पढ़े-लिखे परिवार भी प्रदेशवाद में बुरी तरह जकड़े हुए हैं, इसमें एक कारण रिवाजों का है. जबकि यह कोई समझने के लिए तैयार नहीं है कि रिवाज इंसानों ने ही बनाए हैं. "इंसानों से रिवाज हैं, न कि रिवाजों से इंसान." शादी व शादी के बाद लड़की वालों के लिए बाध्य रिवाजों के कारण ही कन्या भ्रूण हत्याएं होती हैं. राजस्थान में रिवाजों का तो इतना मकड़जाल है कि उन्हें उत्तर प्रदेश, हरियाणा की लड़की वाले निभा ही नहीं सकते. खुद राजस्थान के अलवर जिले के लोग अपनी बेटियों को जयपुर में इसलिए नहीं ब्याहते कि जयपुर के 12 महीने  12 त्यौहार कौन निभाएगा, ऊपर से जन्म, मृत्यु, तीज त्यौहारों, शादी, भात, शोचक पर ढेर सारा लेन-देन. रिवाजों का ही कारण है कि हरियाणें के लोग उत्तर प्रदेश के लोगों को पारवे-लंडर कहते नहीं थकते. उत्तर प्रदेश के लोग हरियाणा में अपनी बेटियों को इसलिए नहीं ब्याहते कि उनकी बेटियों को जीवन भर यह ताने सुनने को मिलेंगे, "पारवे लंडर क्या जानें. पारवी लंडर."
जबकि हरियाणा के लोग अपने बेटों की शादी करने में आनाकानी इसलिए करते हैं, उत्तर प्रदेशा में बेटियों को रिवाजों का लेन देन का चलन कुछ कम है. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्याएं कम होती है, जबकि हरियाणा में सबसे ज्यादा. हरियाणा में ऊंची जाति के लोगों को भी बिहार, आंध्र प्रदेश से बहुएं खरीदकर कर लानी पड़ रही हैं. हरियाणा में 1000 लड़कों पर करीब 838 लड़कियों हैं. यह अनुपात (रेशों) और भी ज्यादा हो सकता है.बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में डेढ़ करोड़ कन्या भ्रूण हत्याएं पिछले 10 वर्षों में हो चुकी है. सबसे ज्यादा कन्या भ्रूण हत्याएं राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में हुईं. लेकिन एक यह भी सच्चाई कि भारत का कोई ऎसा प्रदेश नहीं हैं, जहां कन्या भ्रण हत्याएं न होती हों. इसका प्रमुख कारण रिवाजों की जकड़न ही है. लेकिन सरकार इन  रिवाजों / कुरितियों के प्रति जागरूकता न फैलाकर "लड़कियां नहीं होंगी तो बहुएं कहां से लाओगे" का प्रचार कर इसे रोकने का प्रयास कर रही है, जबकि लिंग का यह अनुपात (रेशों) और भी विकराल रूप धारण करने वाला है. सरकार को व्यवहारिक होना पड़ेगा तथा समाज की कमियों का समझना पड़ेगा.
समाज में जो भी परिवार पढ़े लिखें हैं, वह अपने दिल-दिमाग से सोचें, तथा रिवाजों के नाम पर प्रदेशवाद के चक्कर में न पड़ें, अन्यथा रिवाजों के कारण भ्रूण हत्याएं लगातार बढ़ेंगी तथा रिश्ते करने में परेशानी आएगी. समाज में 35-40 वर्ष की लड़कियां कुंवारी बैठी हुई हैं. उनके कुंवारे रहने में प्रदेशवाद, रिवाज, 3 से लेकर 5-6 गौत्रों का चलन प्रमुख हैं. हम चाहते हैं कि जिस तरह "नानी कानी किसने मानी" कहकर नानी का गौत्र नहीं चलाते, ठीक उसी प्रकार दादी का गौत्र भी छोड़े. समाज की बेटियों के लिए हमारे अभियान में शामिल हों.
- कैलाश चंद चौहान

No comments:

Post a Comment